Why Rupee Falling: आखिर क्यों गिरता जा रहा है रुपया, जानिए इस रुपये की कहानी. रुपये की ही जुबानी!
Why Rupee Falling: सोमवार को रुपया 78.04 रुपये प्रति डॉलर के स्तर पर बंद हुआ था। सोमवार को एक वक्त ऐसा आया था जब रुपये ने 78.28 रुपये का न्यूनतम स्तर छुआ था। मंगलवार को रुपया मामूली मजबूती के साथ 78.03 रुपये के स्तर पर बंद हुआ। रुपये में गिरावट की वजह विदेशी निवेशकों का पूंजी निकालना और कच्चे तेल की बढ़ती कीमतें हैं।
Why Rupee Falling: आखिर क्यों गिरता जा रहा है रुपया, जानिए इस रुपये की कहानी. रुपये की ही जुबानी!
कैसे रुपये के गिरने से भारत को हो रहा है नुकसान?
चलिए एक उदाहरण से समझते हैं कैसे रुपये का गिरना एक बड़ी समस्या है। मान लीजिए आपको कोई सामान आयात करने में 1 लाख डॉलर चुकाने होते हैं। इस साल की शुरुआत में रुपये की कीमत डॉलर की तुलना में करीब 75 रुपये थी। यानी तब हमें इस आयात के लिए 75 लाख रुपये चुकाने पड़ रहे थे। आज की तारीख में रुपया 78 रुपये से भी अधिक गिर गया है। ऐसे में हमें उसी सामान के लिए अब 75 के बजाय 78 लाख रुपये से भी अधिक चुकाने होंगे। यानी 3 लाख रुपये का नुकसान। यह आंकड़ा तो सिर्फ 1 लाख डॉलर के हिसाब से निकाला है, जबकि आयात के आंकड़े लाखों-करोड़ों डॉलर के होते हैं। अब आप अंदाजा लगा सकते हैं कि रुपये की वैल्यू गिरने से भारत को कितना नुकसान झेलना पड़ रहा है।
US Fed Rate Hike : अमेरिका में ब्याज दर बढ़ने से दुनिया में क्यों मच जाता है हाहाकार? इस बार हो सकता है 28 साल का सबसे बड़ा इजाफा
क्यों गिरता जा रहा है रुपया?
बाजार सूत्रों के अनुसार घरेलू कारोबार का नीरस माहौल, कच्चे तेल की कीमतों में तेजी और विदेशी पूंजी को भारतीय बाजार से लगातार निकालने के चलते रुपये की कीमत पर असर पड़ा है। वैश्विक तेल मानक ब्रेंट क्रूड वायदा का दाम 0.72 प्रतिशत बढ़कर 123.15 डॉलर प्रति बैरल हो गया। शेयर बाजार के अस्थायी आंकड़ों के अनुसार, विदेशी संस्थागत निवेशक पूंजी बाजार में शुद्ध बिकवाल रहे। उन्होंने सोमवार को शुद्ध रूप से 4,164.01 करोड़ रुपये के शेयर बेचे।
तो फिर विदेशी निवेशक क्यों निकाल रहे हैं पैसे?
मौजूदा समय में अमेरिका में महंगाई दर 40 सालों के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई है और तेजी से बढ़ रही है। मई महीने में यह 8.6 फीसदी दर्ज की गई थी। भारत में भी महंगाई काफी अधिक हो चुकी है और मई में यह करीब 7 फीसदी है। जिस तरह भारत के रिजर्व बैंक ने महंगाई को काबू में करने के लिए पिछले करीब डेढ़ महीनों में दो बार में 90 बेसिस प्वाइंट की बढ़ोतरी की है, वैसे ही अमेरिकी फेडरल रिजर्व बैंक भी बढ़ोतरी करने पर विचार कर रहा है।
अर्थशास्त्रियों का अनुमान है कि यह बढ़ोतरी 28 सालों की सबसे बड़ी बढ़ोतरी हो सकती है। ऐसे में विदेशी निवेशक शेयर बाजार से अपना पैसा निकाल कर अमेरिका में लगा सकते हैं, जिससे उन्हें अधिक मुनाफा हो। मुद्रा का मूल्य कैसे कम होता है? भारत के पूंजी बाजार में विदेशी निवेशक इसीलिए पैसे लगाते हैं, क्योंकि वहां की तुलना में यहां रिटर्न अधिक मिलते हैं। वैसे विदेशी निवेशक दुनिया भर के बाजारों में पैसे लगाते हैं और जहां ये लोग पैसे लगाते हैं, वहां बाजार भागता है।
हिन्दी वार्ता
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कैसे तय होती है रुपये की कीमत, समझें रुपया और डॉलर का पूरा गणित
बड़ा प्रचलित व्यंग है “भारतीय रुपया सिर्फ एक ही समय उपर जाता है और वो है टॉस का समय”
आज कल रुपये के गिरते भाव के कारण काफ़ी हो हल्ला मचा हुआ है! भारतीया मुद्रा यानी रुपया का मूल्य डॉलर के मुक़ाबले काफ़ी कम हो चुका है! पर क्या आप जानते हैं कि क्या है वो वजह जिसकी वजह से रुपया का मूल्य प्रभावित होता है और कैसे आप देशहित में रुपये को मजबूत करने में अपना योगदान दे सकते हैं! चलिए हम आपको बताते हैं ये सारा गणित. वो भी बिलकुल आसान भाषा में!
बड़ा मुद्रा का मूल्य कैसे कम होता है? ही सीधी सी थियरी है. भारत के पास जितना कम डॉलर होगा, डॉलर का मूल्य उतना बढ़ेगा! भारत या कोई भी देश अपने ज़रूरत की वस्तुए या तो खुद बनाते हैं या उन्हें विदेशों से आयात करते हैं और विदेशो से कुछ भी आयात करने के लिए आपको उन्हें डॉलर में चुकाना पड़ता है! उदाहरण के तौर पर यदि किसी देश से आप तेल का आयात करना चाहते हैं तो उसका भुगतान आप रुपये में नही कर सकते. उसके लिए आपको अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्य किसी मुद्रा का प्रयोग करना होगा. तो इसका मतलब ये है कि भारत को भुगतान डॉलर या यूरो में करना होगा!
काश कि ये देश रुपया स्वीकार कर लेते और हम जितने चाहे रुपये प्रिंट कर के उन्हें दे देते पर वास्तव में ऐसा नही है (वजह जानने के लिए अगली पोस्ट की प्रतीक्षा करें)
अब सवाल ये उठता है कि अंतरराष्ट्रीय खरीददारी करने के लिए हम डॉलर कहाँ से लायें! अपने देश में डॉलर या विदेशी मुद्रा विभिन्न माध्यमों से आती है!
1. निर्यात- देश में बनी वस्तुओ का निर्यात जब हम विदेशो में करते हैं तो उनसे हमें भुगतान के रूप में विदेशी मुद्रा प्राप्त होती है!
2. विदेशी निवेश- विदेशो की कंपनियाँ जब देश में अपना कारोबार लगती हैं या यदि विदेशी निवेशक हमारे देश में उद्योग या शेयर बाजार में निवेश करते हैं तब भी हमें विदेशी मुद्रा प्राप्त होती है
3. विदेशो में रहने वेल भारतीय जब विदेशों से कमाया हुआ डॉलर देश में भेजते हैं तब भी हमारा विदेशी मुद्रा भंडार बढ़ता है!
अब हमें अपने खर्चों एवं ज़रूरी वस्तुओं के आयात के लिए डॉलर का भंडार सुरक्षित रखना पड़ता है. जिसे “विदेशी मुद्रा भंडार” भी कहते हैं. यदि किसी कारणवश ये भंडार ख़त्म हो जाता है तो हमारे लिए बहुत बड़ी समस्या खड़ी हो जाएगी क्युकि तेल के बिना हमारी सारी अर्थव्यवस्था ठप्प पड जाएगी!
हमारे आयात का बिल और निर्यात के बिल में एक संतुलन आवश्यक है. यदि ये संतुलन खराब होता है तब हमारे यहाँ विदेशी मुद्रा की कमी हो जाती है जिसे “करेंट अकाउंट डेफिसिट” भी कहते हैं! अभी भारत करेंट अकाउंट डेफिसिट की समस्या से गुजर रहा है जिसकी वजह से हमारी मुद्रा का लगातार का अवमूल्यन हो रहा है. जिससे रुपये का मूल्य लगातार गिरता चला जा रहा है!
रुपये को मजबूत करने के लिए क्या किया जा सकता है
1. निर्यात बढ़ाया जाए जिससे की विदेशी मुद्रा की प्राप्ति हो. उत्पादन बढ़ाए जाएँ मुद्रा का मूल्य कैसे कम होता है? जिससे की अधिक से अधिक निर्यात हो सके
2. स्वदेशी अपनाओ- विदेशो में बनने वाली ८० पैसे की ड्रिंक यहाँ १५ से २० रुपये में बेचा जाता है! यदि हम स्वदेशी वस्तुओं या प्रयोग करना शुरू कर दें तो इन विदेशी वस्तुओं को आयात करने का खर्च बच जाएगा.
3. तेल का विकल्प- हम बड़ी मात्रा में तेल का आयात करने पर मजबूर हैं क्युकि देश में तेल का उत्पादन माँग के अनुसार नही है. यदि हम तेल पे आश्रित अपनी अर्थव्यवस्था को बदलने की कोशिश करें तो विदेशी भंडार एक बहुत बड़ा हिस्सा हम बचा सकते हैं और इसके लिए हमें तेल के विकल्पों पर विचार करना चाहिए१
4. भारतीयो का स्वर्ण प्रेम- सोना से लगाव काफ़ी पुराना है. विवाह या पर्व त्योहारो पर सोने की माँग में अत्प्रश्चित वृद्धि देखी जाती है जिससे हमारा आयात बिल बढ़ता है!
मोटे तौर पे रुपये को मजबूती देने के लिए हूमें विदेशो से निवेश बढ़ाना होगा. विदेशी निवेशको के लिए अनुकूल माहौल का निर्माण करना होगा! इसके अलावे स्वदेशी अपनाना होगा. जिन चीज़ो को हम देश में बना सकते हैं उनका आयात बंद करना होगा! हर भारतीय को ईमानदारी के साथ भारत का विकास में योगदान देना होगा. उत्पादन जितना बढ़ेगा, निर्यात उतना अधिक होगा, जिससे हमारी अर्थव्यवस्था मजबूत होगी!
आशा करता हूँ की अब आपको रुपये और विदेशी मुद्रा का गणित समझ आया होगा. यदि आपका कोई प्रश्न है तो कृपया कॉमेंट के माध्यम से हमसे पूछें!
एक डॉलर की कीमत 80 रुपये पर पहुंची, जानें- क्यों कमजोर होता जा रहा है रुपया, अभी और कितनी गिरावट बाकी?
Rupee Vs Dollar: एक डॉलर की कीमत 80 रुपये पर पहुंच गई है. संसद में सवालों के जवाब में केंद्र सरकार की तरफ से जवाब दिया गया है कि 2014 के बाद से डॉलर के मुकाबले रुपये में अभी तक 25 फीसदी की गिरावट दर्ज की गयी है.
Updated: July 19, 2022 12:44 PM IST
Rupee Vs Dollar: मंगलवार को शुरुआती कारोबार में भारतीय रुपया मनोवैज्ञानिक रूप से महत्वपूर्ण विनिमय दर के स्तर डॉलर के मुकाबले 80 रुपये के स्तर से नीचे चला गया. ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के मुताबिक, रुपया घटकर 80.06 प्रति डॉलर पर आ गया.
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रुपया विनिमय दर क्या है?
अमेरिकी डॉलर की तुलना में रुपये की विनिमय दर अनिवार्य रूप से एक अमेरिकी डॉलर को खरीदने के लिए आवश्यक रुपये की संख्या है. यह न केवल अमेरिकी सामान खरीदने के लिए बल्कि अन्य वस्तुओं और सेवाओं (जैसे कच्चा तेल) की पूरी मेजबानी के लिए एक महत्वपूर्ण मीट्रिक है, जिसके लिए भारतीय नागरिकों और कंपनियों को डॉलर की आवश्यकता होती है.
जब रुपये का अवमूल्यन होता है, तो भारत के बाहर से कुछ खरीदना (आयात करना) महंगा हो जाता है. इसी तर्क से, यदि कोई शेष विश्व (विशेषकर अमेरिका) को माल और सेवाओं को बेचने (निर्यात) करने की कोशिश कर रहा है, तो गिरता हुआ रुपया भारत के उत्पादों को और अधिक प्रतिस्पर्धी बनाता है, क्योंकि रुपये का अवमूल्य विदेशियों के लिए भारतीय उत्पादों को खरीदना सस्ता बनाता है.
डॉलर के मुकाबले रुपया क्यों कमजोर हो रहा है?
सीधे शब्दों में कहें तो डॉलर के मुकाबले रुपया कमजोर हो रहा है, क्योंकि बाजार में रुपये की तुलना में डॉलर की मांग ज्यादा है. रुपये की तुलना में डॉलर की बढ़ी हुई मांग, दो कारकों के कारण बढ़ रही है.
पहला यह कि भारतीय जितना निर्यात करते हैं, उससे अधिक वस्तुओं और सेवाओं का आयात करते हैं. इसे ही करेंट अकाउंट डेफिसिट (CAD) कहा जाता है. जब किसी देश के पास यह होता है, तो इसका तात्पर्य है कि जो आ रहा है उससे अधिक विदेशी मुद्रा (विशेषकर डॉलर) भारत से बाहर निकल रही है.
2022 की शुरुआत के बाद से, जैसा कि यूक्रेन में युद्ध के मद्देनजर कच्चे तेल और अन्य कमोडिटीज की कीमतों में बढ़ोतरी होने लगी है, जिसकी वजह से भारत का सीएडी तेजी से बढ़ा है. इसने रुपये में अवमूल्यन यानी डॉलर के मुकाबले मूल्य कम करने का दबाव डाला है. देश के बाहर से सामान आयात करने के लिए भारतीय ज्यादा डॉलर की मांग कर रहे हैं.
दूसरा, भारतीय अर्थव्यवस्था में निवेश में गिरावट दर्ज की गयी है. ऐतिहासिक रूप से, भारत के साथ-साथ अधिकांश विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में मुद्रा का मूल्य कैसे कम होता है? CAD की प्रवृत्ति होती है. लेकिन भारत के मामले में, यह घाटा देश में निवेश करने के लिए जल्दबाजी करने वाले विदेशी निवेशकों द्वारा पूरा नहीं किया गया था; इसे कैपिटल अकाउंट सरप्लस भी कहा जाता है. इस अधिशेष ने अरबों डॉलर लाए और यह सुनिश्चित किया कि रुपये (डॉलर के सापेक्ष) की मांग मजबूत बनी रहे.
लेकिन 2022 की शुरुआत के बाद से, अधिक से अधिक विदेशी निवेशक भारतीय बाजारों से पैसा निकाल रहे हैं. ऐसा इसलिए हुआ है क्योंकि भारत की तुलना में अमेरिका में ब्याज दरें बहुत तेजी से बढ़ रही हैं. अमेरिका में ऐतिहासिक रूप से उच्च मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिए अमेरिकी केंद्रीय बैंक आक्रामक रूप से ब्याज दरों में वृद्धि कर रहा है. निवेश में इस गिरावट ने भारतीय शेयर बाजारों में निवेश करने के इच्छुक निवेशकों के बीच भारतीय रुपये की मांग में तेजी से कमी की है.
इन दोनों प्रवृत्तियों का परिणाम यह है कि डॉलर के सापेक्ष रुपये की मांग में तेजी से गिरावट दर्ज की गयी है. यही वजह है कि डॉलर के मुकाबले रुपया कमजोर हो रहा है.
क्या डॉलर के मुकाबले केवल रुपये में ही आई है गिरावट?
यूरो और जापानी येन समेत सभी मुद्राओं के मुकाबले डॉलर मजबूत हो रहा है. दरअसल, यूरो जैसी कई मुद्राओं के मुकाबले रुपये में तेजी आयी है.
क्या रुपया सुरक्षित क्षेत्र में है?
रुपये की विनिमय दर को “प्रबंधित” करने में आरबीआई की भूमिका को समझना महत्वपूर्ण है. यदि विनिमय दर पूरी तरह से बाजार द्वारा निर्धारित की जाती है, तो इसमें तेजी से उतार-चढ़ाव होता है – जब रुपया मजबूत होता है और रुपये का अवमूल्यन होता है.
लेकिन आरबीआई रुपये की विनिमय दर में तेज उतार-चढ़ाव की अनुमति नहीं देता मुद्रा का मूल्य कैसे कम होता है? है. यह गिरावट को कम करने या वृद्धि को सीमित करने के लिए हस्तक्षेप करता है. यह बाजार में डॉलर बेचकर गिरावट को रोकने की कोशिश करता है. यह एक ऐसा कदम है जो डॉलर की तुलना में रुपये की मांग के बीच के अंतर को कम करता है. जिससे भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट आती है. जब आरबीआई रुपये को मजबूत होने से रोकना चाहता है तो वह बाजार से अतिरिक्त डॉलर निकाल लेता है, जिससे भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में बढ़ोतरी होती है.
एक डॉलर की कीमत 80 रुपये से ज्यादा होने के बाद यह कयास लगाए जा रहे हैं कि क्या रुपये में और गिरावट आनी बाकी है? जानकारों का मानना है कि 80 रुपये का स्तर एक मनोवैज्ञानिक स्तर था. अब इससे नीचे आने के बाद यह 82 डॉलर तक पहुंच सकता है.
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गिरते रुपये को रोकें कैसे?
साल भर पहले तक एक डॉलर की कीमत 54 रुपये के आसपास थी। लेकिन इस साल मई से रुपये की कीमत गिरने लगी। इस सोमवार को तो रुपया इतना गिरा कि डॉलर की कीमत 61 रुपये तक जा.
साल भर पहले तक एक डॉलर की कीमत 54 रुपये के आसपास थी। लेकिन इस साल मई से रुपये की कीमत गिरने लगी। इस सोमवार को तो रुपया इतना गिरा कि डॉलर की कीमत 61 रुपये तक जा पहुंची। इसके बाद से रुपये की कीमत में थोड़ा सुधार जरूर हुआ, लेकिन अब भी यह एशिया की सबसे कमजोर मुद्रा है। आपके और हमारे लिए इसका क्या अर्थ है? खासकर जब हमारी कमाई और ज्यादातर खर्च डॉलर में नहीं होते हैं। आटा, दाल-चावल, दूध, अंडे वगैरह हम डॉलर के हिसाब से नहीं खरीदते। हम अपनी गाड़ी में पेट्रोल भरवाने या बस का टिकट खरीदने के लिए डॉलर में भुगतान नहीं करते। अपने लिए मोबाइल फोन या बच्चों के लिए लैपटॉप खरीदते समय भी हमें डॉलर की जरूरत नहीं पड़ती। तो क्या हमें इस गिरते रुपये की चिंता करनी चाहिए? बिलकुल करनी चाहिए। ग्लोबल हो चुकी इस दुनिया में हर देश की मुद्रा की दुनिया की सबसे मजबूत मुद्रा अमेरिकी डॉलर के मुकाबले क्या कीमत है, इसका न सिर्फ उस देश की अर्थव्यवस्था पर असर पड़ता है, बल्कि बाजार में बहुत सारी चीजों की कीमतों पर भी। जैसे- भारत का 75 फीसदी आयात कच्च तेल है, जिसके लिए डॉलर में भुगतान होता है। अगर डॉलर की कीमत बढ़ती है, यानी डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत गिरती है, तो हमें इस आयात के लिए ज्यादा खर्च करना पड़ेगा। नतीजा क्या होगा? हालांकि, सरकार तेल कंपनियों और रिफाइनरियों को पैसा देकर सब्सिडी से इसकी कीमत को कम करने की कोशिश करती है, लेकिन यह काम अनंत काल तक नहीं किया जा सकता। इसलिए तेल कंपनियों के पास इसकी कीमत बढ़ाने के अलावा कोई और चारा नहीं होता। यही वजह है कि पेट्रोल, डीजल और रसोई गैस सभी की कीमत पिछले कुछ समय से लगातार बढ़ रही है। बावजूद इसके कि दुनिया भर में इनकी कीमत इन दिनों स्थिर है। लेकिन क्योंकि रुपये की कीमत गिर रही है, इसलिए हमें और आपको ज्यादा कीमत देनी पड़ रही है।
लेकिन रुपये की कीमत के गिरने का यह हम पर पड़ने वाला अकेला असर नहीं है। सब्जी, अनाज, मीट, मछली वगैरह जो भी चीजें हम खाते हैं, वे जिन ट्रक, टैंपू वगैरह पर लदकर आती हैं, उनके लिए भी डीजल और पेट्रोल की जरूरत पड़ती है। इसका असर माल भाड़े पर पड़ता है, जिससे इन सब चीजों की कीमत बढ़ जाती है। रुपये की गिरती कीमत हम पर और भी कई तरीकों से असर डालती है। जिस भी चीज के उत्पादन में कच्चे माल का आयात होता है, उसकी लागत बढ़ जाती है। इसका अर्थ हुआ कि उपभोक्ता को उसके लिए अपनी जेब ज्यादा ढीली करनी होती है। इसलिए अगर आप कार या स्कूटर खरीदने जा रहे हैं, तो आपको ज्यादा कीमत चुकानी होगी, क्योंकि इनके उत्पादन में कई आयातित चीजों का इस्तेमाल होता है। मोबाइल फोन, टैबलेट, कंप्यूटर और लैपटॉप भी आपको महंगे मिलेंगे, क्योंकि इनके ज्यादातर सामान आयात होते हैं। जो लोग विदेश में पढ़ रहे हैं या पढ़ने जाना चाहते हैं, उन्हें भी अब रुपये की कीमत गिरने के कारण ज्यादा खर्च करना होगा।
लेकिन रुपया इतना ज्यादा गिरा क्यों? इसके लिए हमें अमेरिकी अर्थव्यवस्था को देखना होगा। पिछले कुछ साल में अमेरिका आर्थिक सुस्ती से गुजरा है। कुछ लोग इसे मंदी भी कहते हैं। इस दौरान अमेरिकी अर्थव्यवस्था में ज्यादा बढ़ोतरी नहीं हुई, रोजगार के नए अवसर नहीं पैदा हुए, बेरोजगारी बढ़ी और नए कारोबार में ज्यादा निवेश नहीं हुआ। अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने के लिए अमेरिकी फेडरल रिजर्व (जो हमारे रिजर्व बैंक जैसी ही संस्था है) नोट छापने शुरू कर दिए, ताकि अर्थव्यवस्था में मुद्रा आपूर्ति बढ़ाई जा सके। यह काम आम तौर पर सरकारी बांड खरीदकर किया जाता है, सरकार इस पैसे का इस्तेमाल खर्च और उपभोग बढ़ाने के लिए करती है। इसका एक असर यह भी हुआ कि डॉलर की कीमत कम हो गई। लेकिन इस साल के शुरू में जब अर्थव्यवस्था के अपने रंग में वापस आने के संकेत दिखाई दिए, तो फेडरल रिजर्व ने बांड खरीदने का सिलसिला रोक दिया। इसका अर्थ था बाजार में डॉलर की आपूर्ति का पहले के मुकाबले कम हो जाना। इससे डॉलर की कीमत बढ़ने लगी, जिसकी वजह से वैश्विक निवेशक उन देशों के बाजारों को छोड़ने लगे, जहां की मुद्रा कमजोर है। भारत और दूसरे विकासशील देश इसका शिकार बने। भारत में निवेश करने वाले वैश्विक फंड तुरंत ही अमेरिका के मजबूत बाजार की ओर रुख करने लगे।
इससे भी मुद्रा का मूल्य कैसे कम होता है? बुरी बात यह हुई कि भारत की अर्थव्यवस्था सुस्त होने लगी। जहां कभी आठ और नौ फीसदी की विकास थी, वहां अब विकास दर पांच फीसदी के आसपास हो गई। तो क्या इसका अर्थ है कि रुपये की कीमत के गिरने में सब बुरा ही बुरा है? और फिर भारत रुपये की इस गिरावट का मुकाबला कैसे कर सकता है? पहले बात करते हैं गिरते रुपये के फायदे की। जब रुपया गिरता है, तो विदेशी बाजार में भारतीय सामान सस्ता हो जाता है। इससे विदेशी खरीदारों को भारतीय निर्यात ज्यादा आकर्षक लगने लगता है। और अगर निर्यात तेजी से बढ़े, तो डॉलर में कारोबार करने वाले निर्यातकों की आमदनी भी तेजी से बढ़ेगी। इससे हमारा विदेश व्यापार घाटा भी कम हो सकता है। क्योंकि अभी तक हम आयात करने के लिए जितनी विदेशी मुद्रा खर्च करते हैं, उसके मुकाबले कम निर्यात के कारण बहुत कम विदेशी मुद्रा ही हमें मिल पाती है। रुपये की कीमत कम होने के कारण निर्यातकों को मुद्रा का मूल्य कैसे कम होता है? फायदा हो सकता है, लेकिन यह इस पर भी निर्भर करेगा कि चीन और दूसरे एशियाई देशों के मुकाबले हमारा माल कहां ठहर पाता है। इसका फायदा भारत के आउटसोर्सिंग उद्योग को भी होगा, खास तौर पर कॉल सेंटर और बिजनेस प्रोसेस आउटसोर्सिंग कंपनियों को। इन सबका कारोबार भी डॉलर में होता है और अब ये सेवाएं विदेशी ग्राहकों के लिए सस्ती पड़ेंगी।
और अब आता है गिरते रुपये का मुकाबला करने का मुद्दा। इसका सबसे अच्छा तरीका है कि भारतीय उद्योगों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को प्रोत्साहित किया जाए। प्रत्यक्ष विदेशी निवेश या एफडीआई के रूप में जो धन आता है, वह भारतीय बाजार के दीर्घकालिक महत्व को देखते हुए आता है। यह शेयर बाजार या मुद्रा बाजार में होने वाला निवेश नहीं है, जो थोड़े से उतार-चढ़ाव से ही बाहर आ जा सकता है। जैसे-जैसे एफडीआई की आमद बढ़ेगी, रुपये की कीमत सुधरेगी। यही वजह है कि सरकार इन दिनों खुदरा बाजार, टेलीकॉम, ऊर्जा और दूसरे क्षेत्रों में एफडीआई लाने की कोशिश तेज कर रही है। निर्यात और विदेशी निवेश को बढ़ाकर ही हम गिरते रुपये को थाम सकते हैं।
Dollar vs Rupee: डॉलर के आगे ‘नतमस्तक’ रुपया, इस कमजोरी से देश पर क्या असर पड़ेगा, कौन रहेंगे फायदे में?
Dollar vs Rupee: रुपये के कमजोर होने का सबसे प्रतिकूल असर देश के आयात बिल पर पड़ेगा। जैसे-जैसे रुपया लुढ़क रहा है देश का आयात बिल बढ़ता जा रहा है। अब आयात करने के लिए कारोबारियों को पहले के मुकाबले ज्यादा पैसे खर्च करने पड़ेंगे। आयात पर निर्भर कंपनियों का मार्जिन कम होगा। इसकी वसूली मूल्य वृद्धि कर की जाएगी।
डॉलर के मजबूत होने से भारतीय रुपये में गिरावट का दौर जारी है। सोमवार को शुरुआती कारोबार में ही रुपया में रुपया लगभग 40 अंक टूटकर 81.55 के स्तर पर आ गया। वहीं दूसरी ओर अमेरिकी डॉलर अपने 20 वर्षों के उच्चतम स्तर पर पहुंच गया है। भारतीय रुपये में गिरावट के बाद बाजार के जानकारों का अनुमान है कि रिजर्व बैंक मुद्रा में गिरावट को थामने के लिए डाॅलर बेचने का फैसला ले सकता है।
रुपये के कमजोर होने का सबसे प्रतिकूल असर देश के आयात बिल पर पड़ेगा। जैसे-जैसे रुपया लुढ़क रहा है देश का आयात बिल बढ़ता जा रहा है। अब आयात करने के लिए कारोबारियों को पहले के मुकाबले ज्यादा पैसे खर्च करने पड़ेंगे। आयात पर निर्भर कंपनियों का मार्जिन कम होगा। इसकी वसूली मूल्य वृद्धि कर की जाएगी। इससे पहले से मौजूद महंगाई और ज्यादा बढ़ेगी। ऐसा होने से पेट्रोलियम पदार्थों, विदेश भ्रमण और विदेशी सेवाओं का उपभोग करना महंगा हो जाएगा। रुपये के कमजोर होने से विदेश मुद्रा भंडार पर भी नकारात्मक असर पड़ता है। इससे देश का खजाना खाली होगा। देश की आर्थिक स्थिति के लिहाज से यह सही नहीं है।
तारीख एक डॉलर का मूल्य रुपये में
रुपये के कमजोर होने की स्थिति में विदेशों में अपना कारोबार करने वाली आईटी कंपनियों की कमाई बढ़ जाएगी। वहीं, फार्मा सेक्टर का निर्यात भी बढ़ जाएगा। इसके अलावे कपड़ा क्षेत्र को भी रुपये के कमजोर होने का फायदा होगा क्योंकि वस्त्रों के निर्यात के मामले में भारत फिलहाल विश्व में दूसरे स्थान पर मौजूद है। इसलिए अगर डॉलर मजबूत होता है इस सेक्टर को बड़ा फायदा होगा।
रुपये में आई बड़ी गिरावट के बाद वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बीते शनिवार को कहा कि रुपया अन्य मुद्राओं की तुलना में अमेरिकी डॉलर के मुकाबले काफी मजबूत है। रुपये के रिकॉर्ड निचले स्तर पर जाने से जुड़े सवाल पर सीतारमण ने कहा कि रिजर्व बैंक और वित्त मंत्रालय स्थिति पर बहुत करीबी नजर रख रहे हैं। उन्होंने यहां संवाददाताओं से कहा कि अगर कोई एक मुद्रा है जो खुद को संभालाने में सक्षम है और अन्य मुद्राओं की तुलना में उतार-चढ़ाव या अस्थिरता से बची हुई है, तो वह भारतीय रुपया है। हमने बहुत अच्छी तरह से वापसी की है। हमने काफी अच्छी तरह से इस स्थिति का सामना किया है।
उन्होंने रुपये की गिरती कीमत के बारे में पूछे जाने पर कहा कि गिरावट के मौजूदा दौर में डॉलर के मुकाबले अन्य मुद्राओं की स्थिति पर भी अध्ययन करने की जरूरत है। अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपया शुक्रवार को 81.09 रुपये प्रति डॉलर के स्तर तक पहुंच गया था। पिछले कुछ महीनों में लगातार ये गिरावट जारी है।
विस्तार
डॉलर के मजबूत होने से भारतीय रुपये में गिरावट का दौर जारी है। सोमवार को शुरुआती कारोबार में ही रुपया में रुपया लगभग 40 अंक टूटकर 81.55 के स्तर पर आ गया। वहीं दूसरी ओर अमेरिकी डॉलर अपने 20 वर्षों के उच्चतम स्तर पर पहुंच गया है। भारतीय रुपये में गिरावट के बाद बाजार के जानकारों का अनुमान है कि रिजर्व बैंक मुद्रा में गिरावट को थामने के लिए डाॅलर बेचने का फैसला ले सकता है।
रुपये की कमजोरी का बाजार पर क्या होगा असर?
रुपये के कमजोर होने का सबसे प्रतिकूल असर देश के आयात बिल पर पड़ेगा। जैसे-जैसे रुपया लुढ़क रहा है देश का आयात बिल बढ़ता जा रहा है। अब आयात करने के लिए कारोबारियों को पहले के मुकाबले ज्यादा पैसे खर्च करने पड़ेंगे। आयात पर निर्भर कंपनियों का मार्जिन कम होगा। इसकी वसूली मूल्य वृद्धि कर की जाएगी। इससे पहले से मौजूद महंगाई और ज्यादा बढ़ेगी। ऐसा होने से पेट्रोलियम पदार्थों, मुद्रा का मूल्य कैसे कम होता है? विदेश भ्रमण और विदेशी सेवाओं का उपभोग करना महंगा हो जाएगा। रुपये के कमजोर होने से विदेश मुद्रा भंडार पर भी नकारात्मक असर पड़ता है। इससे देश का खजाना खाली होगा। देश की आर्थिक स्थिति के लिहाज से यह सही नहीं है।
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